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सामर्थ्यहीन शब्द

  • nirajnabham
  • Jan 30
  • 1 min read

कर पाते व्यक्त अंतर्द्वंद्व, शब्द 

उन पलों के

जब होता है संदेह

अपनी ही उपलब्धियों पर

खड़ा होता है अपने ही कठघरे में

अपने ही सवालों से नज़र चुराता

तथाकथित सफल निर्णयकर्ता ।

कर पाते व्यक्त तरलता, शब्द

उन पलों के

जब सराहना का पात्र

प्रशंसा का केंद्र बिन्दु कोई

सोचता अपने मन में

क्या उन पलों के उपयोग का

वही था सबसे बेहतर विकल्प ।

कर पाते व्यक्त आतंक, शब्द

उन पलों के

जब सताता है भय

समा जाएँगे क्या चमकते पल

उन्हीं सियाह रातों में

गुम जाएगी तस्वीर आईने में

अचानक रोशनी के साथ।

व्यक्त कर पाते नैराश्य, शब्द

उन पलों के

जब सोचता है कोई दीन

अश्रुहीन रुदन के साथ 

भोग में डूबा आकंठ, सत्ता का केंद्र

वही है उस ईश्वर की कृपा का पात्र

कहलाता है जो गरीबनवाज़। 

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