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वे दिन ये दिन

  • nirajnabham
  • Jan 30
  • 1 min read

कितने लापरवाह थे

दिन वे भी

कितना पिघल आता था

हमारे बीच

जब खीजती थीं तुम

और गुस्सा होता था मैं

फिर किसी छोटे से

घनीभूत पल में

जाता था जम

रिश्तों को मजबूत कर।

कितना डरता हूँ

इन दिनों

जब होती हो गुस्सा तुम

और खीजता हूँ मैं

कितना जाएगा बिखर

कहीं से टूट कर

रिश्तों को कमजोर कर

कितने सावधान हैं

दिन ये भी।

 

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