विदाई
- nirajnabham
- Oct 17, 2021
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बीतने वाली है रात
प्रिये, खत्म करो अब बात।
साँसों में बसा दावानल
मन और प्राण हुए विकल
फूटेगी जब पहली किरण
पंख पसार विहग निकल
भाता नहीं अब साथ
प्रिये, खत्म करो अब बात
आँखों-आँखों में बीते पल
सारी रात गई निकल
हार थके कर कितने जतन
बस में नहीं है कोलाहल
कानों पर अब धरने दो हाथ
प्रिये, खत्म करो अब बात।
बहते निर्झर कल-कल, कल-कल
तारे करते झल-मल, झल-मल
गति रुकती नहीं रुकती किरण
निर्णय का है पल
छोड़ो, अब मेरा हाथ
प्रिये, खत्म करो अब बात।
राग, रंग, वसन निर्मल
प्यासे होठों को मीठा जल
तूने दिया अवदान
आँखों में क्यों खारा जल!
नहीं पछताने की बात
प्रिये, खत्म करो अब बात।
रात की बातें कोमल-कोमल
दिन में जाती बदल-बदल
दिन होगा दर्पण
उससे पहले जाऊँ निकल
समझो भी कुछ बात
प्रिये, खत्म करो अब बात।
अच्छी गुजरी या भुगते पल
अपनी करनी, अपना फल
होठों पर कैसा ये कम्पन
देखो प्राची हुआ उज्ज्वल
विदाई में उठे अब हाथ
प्रिये, खत्म हुई सब बात ।
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