रोशनी दिन के नाम
- nirajnabham
- Nov 22, 2021
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अंधेरे की चादर ओढ़े
फिर निकला है दिन
जैसे सड़कों पर
पर्दानशीनों का हुजूम
अभिव्यक्ति को आकुल
बह जाएगी सुंदरता
रेशमी अँधेरी राह पर।
लेकिन कितने इंतज़ार हैं-
दिन की रोशनी के और-
अनहद होता हर इंतज़ार।
कठमुल्लों का दवाब
या शोहदों का डर
लाख बुरा हो अपना शहर
पर उसे भी है-
रोशनी की जरूरत।
दिन तो बलशाली है
तीखी है किरणों की कटार
फिर ये धुआँ-धुआँ सा क्या है!
उनींदा सा चलता दिन
क्या कर पाएगा महसूस
रात की रूमानियत!
बेचैन हो उठा मन
करने दिन की तंद्रा भंग
अनायास बाहर निकल आया ।
दिन तो चलता चला गया
छा गया साँसों में
निकलता काला धुआँ
बेहोशी बनकर।
लिपटा दिया लेकिन-
लबादे में दिन के
मैंने अपना पाँव
घिसटते हुए ही सही
तय कर दिया रोशनी
एक दिन के नाम।
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