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अनुगूँज

  • nirajnabham
  • Nov 15, 2021
  • 1 min read

विश्वास हँसी में उड़ गया

आज़मा कर देखना

अब रवायत ठहरा।

तुम्हें तो आदत है

वक़्त के साथ चलाने की

इसलिए देनी होगी विदाई

न चाहते हुए भी।

क्योंकि- चल नहीं सकता

छोड़ कर उस वक़्त को

जम गया है जो भीतर

ध्रुवीय बर्फ की तरह

सुरक्षित हैं जिसमें

कुँवारी धरती पर

तुम्हारे कदमों के निशान ।

जानता हूँ फिर आओगी तुम

पता पूछने के बहाने ही सही

क्योंकि आवाज है वह

तुम्हारे ही दिल की

जिसके साथ चल रहे हो तुम।

वक़्त तो कब का गुज़र गया

छेड़ कर दिलों के तारों को

ये तो सिर्फ अनुगूँज है।

किन्तु साथ हैं तुम्हारे

मेरी शुभकामनाएँ

हे ईश्वर! मुझे धृतराष्ट्र होने से बचाएँ।

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