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जमीन

  • nirajnabham
  • Nov 14, 2021
  • 1 min read

बेकार था बचना

भागना, छटपटाना

इस मोड़ या उस मोड़

बह गया, सब कुछ।

पहाड़ से उतरते पानी में

तोड़ दी नदियों ने

लाज की लक्ष्मण रेखा।

शोरगुल करते

मचा रहे हैं उधम

कुछ नादान बच्चे

फटे घाव सी जमीन पर

खड़ा था जहाँ बूढ़ा बरगद

दब गया है जो अब

रेत के नीचे ।

अजीब से चश्मा लगाए

यहाँ-वहाँ सूँघते

कुत्तों की तरह कुछ लोग

व्यक्त कर रहे हैं विचार

कि घेर रखी थी

जरूरत से ज्यादा जमीन

बीते हुए बरगद ने

हो गई है उपलब्ध

अब आवश्यक

थोड़ी और जमीन

सभ्यता के विकास के लिए ।

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