आईना
- nirajnabham
- Oct 15, 2021
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अहा ! उन्माद के वे चरम क्षण
फूल, पत्थर, शिखर, गह्वर
जो दिखा सब अतीव सुंदर
अहा ! उन्माद के वे चरम क्षण
केन्द्रित, युग्मित, संसृत, निःसृत
खंडित, परिमित सब बने अपरिमित
अहो! होनी के वह परम क्षण
दमित, प्रकाशित, संकुचित, विकसित
अमर्यादित या मर्यादित
जो भी है सब निज के हित
अहा! विस्मृति के वे मदिर क्षण
राग, विराग, अनुराग रंगा
अगम रहा जो मूक गिरा
अहा! हेतु के ये भ्रमित क्षण
अहो! हेतु के यह भ्रमित क्षण ।
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