भूख
- nirajnabham
- Oct 8, 2021
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हर अंधेरे में पकती है – भूख
दुखों के चूल्हे पर
कहीं धुआँता गीली लकड़ियों सा
थोड़ा प्रकाश थोड़ी गरमी देता
फूंकने वाले मुँह की आँखों में चुभता
बेरंग ज़ायका निकल पड़ता है
बीनने कुछ और जलावन
लिपटी रहती है धुआँती ठूठों में
राख़ की तरह भूख
असावधान हाथों को धोखे से जलाती
कितनी दूर ले आया है समय
लंबी होती रातों का
अब एक ही आसरा है – भूख।
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