मनnirajnabhamFeb 6, 20221 min readनिश्छल नयनों के दीप धुआँने लगते हैं तब भी नहीं रुकता साँसों पर सवार सपनों का आना जाना। लड़खड़ाते हाथ अब भी उठते हैं आकाश की तरफकिन्तु क्या करे कोई जब मन न चाहे सपनों के पीछे भागना।
सामर्थ्यहीन शब्दकर पाते व्यक्त अंतर्द्वंद्व, शब्द उन पलों के जब होता है संदेह अपनी ही उपलब्धियों पर खड़ा होता है अपने ही कठघरे में अपने ही सवालों से नज़र...
मानवता का छाताजब-जब देता है कोई मानवता की दुहाई धिक्कारती है मानवता हो जाने दे अर्थहीन गुम जाने दे शब्द- मानवता। सँजोने को निजता प्रमाणित करने को...
वे दिन ये दिनकितने लापरवाह थे दिन वे भी कितना पिघल आता था हमारे बीच जब खीजती थीं तुम और गुस्सा होता था मैं फिर किसी छोटे से घनीभूत पल में जाता था जम...
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