शर्म तो आनी नहीं है
- nirajnabham
- Jul 29, 2024
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खटकता है मेरा चेहरा उन आँखों में जिसमें पानी नहीं है
क्या डर उनकी बददुआओं से दुआ करना जिसे आनी नहीं है
गुजर जाऐंगे हम तो उसकी जहान से भी मजे ले लेकर
गरमी बहुत है हसद की आग में लेकिन दरिया सी रवानी नहीं है
लुत्फ ए मय चाहिए और मजा ए नाज ओ अन्दाज भी
मिजाज आशिकाना रखिए सुकून दानिशमंदी से आनी नहीं है
दर्दे ए दिल दिखाऊँगा करूँगा शिकवा दिलबर नादान की
जिन लबों पे आया उनका नाम उन पर फरियाद आनी नहीं है
होगा तू हाकिम ए शहर हर मौज पर तेरी निशानी होगी
हम मुसाफिर हैं दर ए महबूब से पहले तो मौत भी आनी नहीं है
नींद आँखों में उतरती है उसकी याद के झोंकों के साथ
दिल कहता है लौट चलें लज्जत किसी जख्म में अब आनीनहीं है
गिना रहा था वो मेरे गुनाह एक एक कर बड़े जोश से
मर जाएगा ये जान कर इस शख्स को शर्म तो आनी नहीं है।
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