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- nirajnabham
- Oct 15, 2021
- 1 min read
जिंदगी की शाम पर सुबह की छाया पड़ी
गुनगुनाती नींद में यादों की दरिया बही
सूखे लबों के घाट पर प्यास की नदिया चढ़ी
दीवानगी का आसरा है दिल नहीं दरिया सही
बह गया सूरज पसीने सा पेशानी पर जल कर
रात शबनमी नहीं तो अलसाई सी सुबह सही
मुरझा गए कितने फूल बहारों के गीत गाते-गाते
सूनी आँख के सीपी को बारिश की एक बूंद सही
ढूंढ रहे हैं प्यासे पाँव घने जंगल में आग को
जल मरूँ या प्यासा मरूँ सोच ज़रा जल्दी सही
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