top of page

बैठे-ठाले का गरिष्ठ चिंतन

  • nirajnabham
  • Oct 7, 2021
  • 2 min read

प्रत्येक वस्तु जिसका अस्तित्व होता है उसकी अपनी एक सत्ता होती है जो उसके द्वारा दूसरी वस्तुओं को नियंत्रित या प्रभावित करने की उसकी क्षमता के समानुपाती होती है। किसी सत्ता की नियामक क्षमता उसमें अंतर्निहित एवं प्रभावी नियंत्रणों के कुल योग से निर्धारित होती है। कोई सत्ता उतनी ही बड़ी होती है जितनी उसकी दूसरों को प्रभावित या नियंत्रित करने की क्षमता होती है और जो सत्ता जितनी बड़ी होती है वह उतनी ही अधिक नियंत्रित होती है। अतएव बड़ी सत्ता की आकांक्षा उसके सतही मूल्यांकन का प्रभाव होती है। किसी सत्ता से ऊर्जा का निरंतर विकिरण होता रहता है जो उसके आंतरिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न होता है। विकिरण का प्रवाह अधिक होने पर सत्ता का क्षरण होने लगता है। इसी कारण नवीन सत्ता केन्द्रों का सृजन एवं उनके पारस्परिक सम्बन्धों में परिवर्तन होता रहता है।





प्रकृति केवल ऋत से बंधी है। पुरुष इच्छाओं से संचालित है। एक नियम के अधीन रहना उसके लिए संभव नहीं। पुरुष प्रकृति का कर्ता स्वरूप है। प्रकृति से परे कुछ भी नहीं। यदि है तो वह प्रकृति है।




जिस प्रकार आत्मा की मुक्ति उसके दृश्यमान जगत से परे चले जाने में है उसी प्रकार कविता की मुक्ति भी उसके शब्दातीत हो जाने में है। समस्त काव्य व्यंजना सम्पूर्ण मौन में निहित होती है। शब्दों की अंतर्वेदना साहित्यकार की निजता के स्पर्श से सृजन कर्म में तिरोहित होती है। साहित्य रचयिता एवं शब्द दोनों की मुक्ति का उद्घोष है। मुक्ति का चरम क्षण वह होता है जब निर्णायक पाठक के समक्ष शब्द एवं साहित्यकार द्वारा विमुक्त स्पेश में एक ऐसी भावभूमि का निर्माण होता है जिससे इतर कोई अस्तित्व नहीं होता है।





कविता व्यक्ति का परिवेश के साथ सतत संवाद है। ऐसा संवाद जो स्थापित करता चलता है एक दूसरे की नित नई पहचान (परिवर्तित होते समय के साथ), परिभाषाएँ पारस्परिक सम्बन्धों की (परिवर्तित होते समय के साथ), पहचान स्व की अनंत के साथ अनंत परिप्रेक्ष्यों में (परिवर्तित होते समय के साथ)। परिवर्तन के इस प्रवाह में व्यर्थ है किसी ऐसे बिन्दु की तलाश जिसे हम अपनी एक परिभाषा सौंप कर निश्चित सम्बन्धों की तामीर कर सकते है। ऐसे प्रयासों की व्यर्थता तथाकथित विकास के आयामों के मध्य तीव्रता से स्पष्ट होती जाएगी क्योंकि चेतना की व्याकुलता परिवेश की सघनता के अनुपात में बढ़ती जाएगी। भौतिक एवं मनोजगत की अंतरक्रियाओं के फलस्वरूप वस्तु एवं अनुभव के नए संसार क्रमश: जुडते रहेंगे जिससे परिवेश की सघनता में वृद्धि की दर और तेज होगी।

Comments


9760232738

  • Facebook
  • Twitter
  • LinkedIn

©2021 by Bhootoowach. Proudly created with Wix.com

bottom of page